पुलवामा हमले का एक सालः बचे साथी जवानों को अपने हाथों से बदला न ले पाने का मलाल
दक्षिणी कश्मीर में पुलवामा जिले के लेथपोरा इलाके में सीआरपीएफ काफिले पर आत्मघाती हमले के जख्म अभी भी हरे हैं। हमले में 44 जवान शहीद हो गए। जो साथी बचे उनके जेहन में पूरा वाकया और दिल को दहला देने वाला वो मंजर बिल्कुल ताजा है।
अमर उजाला से विशेष बातचीत में 45वीं बटालियन के हैड कांस्टेबल राजेश प्रताप सिंह ने कहा कि हमले के बाद का वो मंजर कल की घटना लगता है। राजेश ने कहा ‘धमाके के वक्त हमारी गाड़ी हमले का शिकार वाहन से दो गाड़ी के अंतर पर थी।
धमाके के बाद हवा में आग के अंगारे नजर आए। चारों तरफ साथी जवानों के चीथड़े बिखरे हुए थे। उनके दिल में मुंह तोड़ जवाब देने का जज्बा है, जिसे वह आतंक रोधी अभियान में अपना रहे हैं।’ एक अन्य जवान हैड कांस्टेबल सुनील कुमार ने बताया कि वो दृश्य नहीं भूलता।
लेकिन जवानों के मनोबल में कोई कमी नहीं आई है। सुनील के अनुसार शहीद साथियों की यादें साथ लेकर आतंक के खिलाफ लगातार आगे बढ़ रहे हैं। वहीं कश्मीर में उड़ी के रहने वाले सीआरपीएफ जवान असलम ने बताया कि धमाका होते ही वह गाड़ी से उतरकर जमीन पर लेट गए। साथियों को खोने का गम भी था। हादसे की रात किसी ने खाना नहीं खाया।
सीआरपीएफ का यह काफिला उस दिन सुबह साढ़े तीन बजे जम्मू से चला था। दोपहर 3 बजे के आस पास पुलवामा के लेथपोरा में आत्मघाती हमला हो गया। काफिले में शामिल अधिकतर जवान अपनी छुट्टियां काट कर ड्यूटी के लिए श्रीनगर लौट रहे थे। काफिले में कुल 78 गाड़ियां थीं। उन्हीं में से एक गाड़ी को आत्मघाती हमलावर ने अपनी गाड़ी से उड़ा दिया था।
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