काली तुलसी की खेती कर हो जाइए मालामाल..हर साल देगी ६ करोड़ तक का मुनाफा
काली तुलसी की खेती कर हो जाइए मालामाल...
दोस्तों तुलसी एक ऐसा पौधा है जिसकी जड़ से लेकर फूल और पत्ती , तना . बीज सब कुछ दवाइयों में काम आती है और यह बहुत ही फायदेमंद खेती होती है जोकि आपको बहुत जल्दी करोड़पति बना देगी ,
तुलसी एक शाकीय तथा औषधीय पौधा है। इनमें ऑसीमम सैक्टम को प्रधान या पवित्र तुलसी माना गया जाता है, इसकी भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं- श्री तुलसी जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियाँ निलाभ-कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं। इसके अतिरिक्त ऐलोपैथी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है।
तुलसी ऐसी औषधि है जो ज्यादातर बीमारियों में काम आती है। इसका उपयोग सर्दी-जुकाम, खॉसी, दंत रोग और श्वास सम्बंधी रोग के लिए बहुत ही फायदेमंद माना जाता है। तुलसी की पत्तियों में एक चमकीला पीला वाष्पशील तेल पाया जाता है जो कीड़े और बैक्टीरिया के खिलाफ उपयोगी होता है।
यह झाड़ी के रूप में उगता है और 1 से 3 फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ से ढकी होती हैं। पत्तियाँ 1 से 2 इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं 8 इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं।
नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
तुलसी की सामान्यतः निम्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं:
ऑसीमम अमेरिकन (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी।
वैज्ञानिक नाम : ओसिमम केनम
सामान्य नाम : काली तुलसी
तुलसी पौधे का उपयोग:
तेल और पत्तियों का उपयोग भोजन को स्वादिष्ट बनाने, च्यूगंम, मिठाई, चाय, शीतल पेय, ऊर्जा पेय, दूध के उत्पाद, सौंदर्य प्रसाधन, साबुन, साबुन, शाँवर जेल, बाँडी लोशन और टूथपेस्ट में किया जाता है।
यह मलेरिया और डेंगू दोनों तरह के बुखार में भी काम लायी जाती है
जिन लोगो को शुगर ( मधुमेह ) की बीमारी होती है उनके लिए यह वरदान साबित होती है ,
ठन्डे बुखार , जोड़ो का दर्द सूजन , सर दर्द सभी में इसका औसधि के रूप में इस्तेमाल होता है
दन्त समस्याओ में इसका बहुत ज्यादा उपयोग होता है
वातावरण को सुगन्धित करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है
उत्पति और वितरण :
यह जड़ी-बूटी उष्ण कटिबंधीय अफ्रीका और दूसरे उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में सामान्यत: पाई जाती है। भारत में यह जम्मू कश्मीर, पंजाब, हिमालय प्रदेश, उत्तरांचल और दिल्ली में बहुतायत में पाई जाती है।
स्वरूप :
पौधा आधारीय शाखाओ, कोणीय तने और अण्डाकार रोमिल पत्तियों के साथ होता है।
यह पौधा अनियमित और झुंड में चक्राकार रूप से बढ़ता है।
इसके दलपुंज छोटे होते हैं।
पत्तियां :
पत्तियाँ एक दूसरे के सम्मुख और दांतेदार होती हैं।
पत्तियाँ छोटी और अस्पष्ट होती हैं।
रोपाई:
सिंचित क्षेत्रों में 6 से 10 से.मी. लंबे अंकुरित पौधों को जुलाई या अक्टूबर–नवंबर माह में खेतों में लगाया जाता है। अंकुरित पौधों को कतार में 40 से.मी. की दूरी पर लगाया जाता है। रोपण के तुंरत बाद खेत की सिंचाई की जाती है।
पौधशाला प्रंबधन
नर्सरी बिछौना-तैयारी
क्यारियों को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है। गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग किया जाता है। बीज नर्सरी में बोये जाते हैं। एक हेक्टेयर भूमि के लिए लगभग 20-30 कि.ग्रा. बीजों की आवश्यकता होती है। बुवाई के बाद FYM और मिट्टी के मिश्रण की पतली परत को बीजों के ऊपर फैलाया जाता है। स्पिंक्लर द्वारा सिंचाई की जाती है। बीज अंकुरण के लिए 8-12 दिन का समय लेते है और लगभग 6 सप्ताह के बाद पौधे रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं।
उत्पादन प्रौद्योगिकी खेती
खाद :
जैविक उर्वरक या तरल उर्वरक का प्रयोग किया जाता है। इसे कम उर्वरक की आवश्यकता होती है। बहुत ज्यादा उर्वरक से पौधा जल जाता है। कभी भी बहुत गर्म या ठंडे मौसम में उर्वरक नहीं डालना चाहिए। रोपण के समय आधारीय खुराक के रूप में मिट्टी में 40 कि.ग्रा./हे. P की मात्रा दी जाती है। पौधे के विकास के दौरान 40 कि.ग्रा./हे. N की मात्रा दो भागों में विभाजित करके दी जाती है।
सिंचाई प्रबंधन :
रोपण के बाद विशेष रूप से मानसून के अंत के बाद खेत की सिंचाई की जाती है। दूसरी सिंचाई के बाद पौधे अच्छी तरह जम जाते हैं। अंतराल को भरने और कमजोर पौधो को अलग करने का यह सही समय होता है ताकि खेत में एक समान पौधे रहें। गार्मियो में 3-4 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है जबकि शेष अवधि के दौरान आवश्यकता के अनुसार सिंचाई की जाती है। लगभग 20-25 बार सिंचाई देना पर्याप्त होता है।
कटाई: यह फसल मात्र ९० दिंनो में तैयार हो जाती है उसके बाद इसे काटा जाता है ,
इसे १५ से २० सेंटीमीटर ऊपर से काटा जाता है , इस तरह काटने से इसकी दुबारा बुवाई की जरुआत नहीं पड़ती , पुराने पौधे की जड़ में से ही यह दुबारा पेड़ की सकल ले लेती है और जल्दी और अच्छी फसल देती है ,
बेचने के लिए तैयार करना :
काटने के बाद इसे छायादार जगह पर ८ से १० दिन के लिए सुखाया जाता है ,
भडांरण :
पत्तियों को शुष्क स्थानों में संग्रहित किया जाना चाहिए।
गोदाम भंडारण के लिए आदर्श होते हैं।
शीत भंडारण अच्छे नहीं होते हैं।
दोस्तों तुलसी एक ऐसा पौधा है जिसकी जड़ से लेकर फूल और पत्ती , तना . बीज सब कुछ दवाइयों में काम आती है और यह बहुत ही फायदेमंद खेती होती है जोकि आपको बहुत जल्दी करोड़पति बना देगी ,
तुलसी एक शाकीय तथा औषधीय पौधा है। इनमें ऑसीमम सैक्टम को प्रधान या पवित्र तुलसी माना गया जाता है, इसकी भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं- श्री तुलसी जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियाँ निलाभ-कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं। इसके अतिरिक्त ऐलोपैथी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है।
तुलसी ऐसी औषधि है जो ज्यादातर बीमारियों में काम आती है। इसका उपयोग सर्दी-जुकाम, खॉसी, दंत रोग और श्वास सम्बंधी रोग के लिए बहुत ही फायदेमंद माना जाता है। तुलसी की पत्तियों में एक चमकीला पीला वाष्पशील तेल पाया जाता है जो कीड़े और बैक्टीरिया के खिलाफ उपयोगी होता है।
यह झाड़ी के रूप में उगता है और 1 से 3 फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ से ढकी होती हैं। पत्तियाँ 1 से 2 इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं 8 इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं।
नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
तुलसी की सामान्यतः निम्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं:
ऑसीमम अमेरिकन (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी।
वैज्ञानिक नाम : ओसिमम केनम
सामान्य नाम : काली तुलसी
तुलसी पौधे का उपयोग:
तेल और पत्तियों का उपयोग भोजन को स्वादिष्ट बनाने, च्यूगंम, मिठाई, चाय, शीतल पेय, ऊर्जा पेय, दूध के उत्पाद, सौंदर्य प्रसाधन, साबुन, साबुन, शाँवर जेल, बाँडी लोशन और टूथपेस्ट में किया जाता है।
यह मलेरिया और डेंगू दोनों तरह के बुखार में भी काम लायी जाती है
जिन लोगो को शुगर ( मधुमेह ) की बीमारी होती है उनके लिए यह वरदान साबित होती है ,
ठन्डे बुखार , जोड़ो का दर्द सूजन , सर दर्द सभी में इसका औसधि के रूप में इस्तेमाल होता है
दन्त समस्याओ में इसका बहुत ज्यादा उपयोग होता है
वातावरण को सुगन्धित करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है
उत्पति और वितरण :
यह जड़ी-बूटी उष्ण कटिबंधीय अफ्रीका और दूसरे उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में सामान्यत: पाई जाती है। भारत में यह जम्मू कश्मीर, पंजाब, हिमालय प्रदेश, उत्तरांचल और दिल्ली में बहुतायत में पाई जाती है।
स्वरूप :
पौधा आधारीय शाखाओ, कोणीय तने और अण्डाकार रोमिल पत्तियों के साथ होता है।
यह पौधा अनियमित और झुंड में चक्राकार रूप से बढ़ता है।
इसके दलपुंज छोटे होते हैं।
पत्तियां :
पत्तियाँ एक दूसरे के सम्मुख और दांतेदार होती हैं।
पत्तियाँ छोटी और अस्पष्ट होती हैं।
रोपाई:
सिंचित क्षेत्रों में 6 से 10 से.मी. लंबे अंकुरित पौधों को जुलाई या अक्टूबर–नवंबर माह में खेतों में लगाया जाता है। अंकुरित पौधों को कतार में 40 से.मी. की दूरी पर लगाया जाता है। रोपण के तुंरत बाद खेत की सिंचाई की जाती है।
पौधशाला प्रंबधन
नर्सरी बिछौना-तैयारी
क्यारियों को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है। गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग किया जाता है। बीज नर्सरी में बोये जाते हैं। एक हेक्टेयर भूमि के लिए लगभग 20-30 कि.ग्रा. बीजों की आवश्यकता होती है। बुवाई के बाद FYM और मिट्टी के मिश्रण की पतली परत को बीजों के ऊपर फैलाया जाता है। स्पिंक्लर द्वारा सिंचाई की जाती है। बीज अंकुरण के लिए 8-12 दिन का समय लेते है और लगभग 6 सप्ताह के बाद पौधे रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं।
उत्पादन प्रौद्योगिकी खेती
खाद :
जैविक उर्वरक या तरल उर्वरक का प्रयोग किया जाता है। इसे कम उर्वरक की आवश्यकता होती है। बहुत ज्यादा उर्वरक से पौधा जल जाता है। कभी भी बहुत गर्म या ठंडे मौसम में उर्वरक नहीं डालना चाहिए। रोपण के समय आधारीय खुराक के रूप में मिट्टी में 40 कि.ग्रा./हे. P की मात्रा दी जाती है। पौधे के विकास के दौरान 40 कि.ग्रा./हे. N की मात्रा दो भागों में विभाजित करके दी जाती है।
सिंचाई प्रबंधन :
रोपण के बाद विशेष रूप से मानसून के अंत के बाद खेत की सिंचाई की जाती है। दूसरी सिंचाई के बाद पौधे अच्छी तरह जम जाते हैं। अंतराल को भरने और कमजोर पौधो को अलग करने का यह सही समय होता है ताकि खेत में एक समान पौधे रहें। गार्मियो में 3-4 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है जबकि शेष अवधि के दौरान आवश्यकता के अनुसार सिंचाई की जाती है। लगभग 20-25 बार सिंचाई देना पर्याप्त होता है।
कटाई: यह फसल मात्र ९० दिंनो में तैयार हो जाती है उसके बाद इसे काटा जाता है ,
इसे १५ से २० सेंटीमीटर ऊपर से काटा जाता है , इस तरह काटने से इसकी दुबारा बुवाई की जरुआत नहीं पड़ती , पुराने पौधे की जड़ में से ही यह दुबारा पेड़ की सकल ले लेती है और जल्दी और अच्छी फसल देती है ,
बेचने के लिए तैयार करना :
काटने के बाद इसे छायादार जगह पर ८ से १० दिन के लिए सुखाया जाता है ,
भडांरण :
पत्तियों को शुष्क स्थानों में संग्रहित किया जाना चाहिए।
गोदाम भंडारण के लिए आदर्श होते हैं।
शीत भंडारण अच्छे नहीं होते हैं।
I would like to grow this but how I collect the seeds and necessary some gide. Please contact me on my phone 9101635677
ReplyDeleteHi did you get any details about it so please let me know I also would like to start this please help Brother thank you 8827083210
DeleteMai bihar se hu mai bhi karana chahata hu sir 6299166929
DeleteI am interested in this how can I start and please tell me the details how to sell it and proper market for this business . Please call me on this number 6370653199.
ReplyDeleteMain Chhattisgarh.ka hu Jankari Chahiye kaha bikega.
ReplyDeletemo.no.6261408052
Myself Vijay from Odisha district ganjam first you take mynamskar.about kalatulasi farming more knowledge is require how we can get seeds and sales of product in proper way without any cheating
ReplyDeleteThanks with regards bijay thanks àģain
मुझे काली तुलसी के बारे में जानकारी चाहिए कि फसल तैयार हो जाने के बाद कहां बिकेगी किस्से कौन सी फर्म से समपसम्प करना पड़ेगा कृपया फोन नंबर दे धनंयबाद आपका ।
ReplyDelete8930039028call me sar
Deleteकाली तुलसी कहां बिकेगी उसका पता देवें मेरा नाम निरंजन मिश्रा फोन नंबर ९७५५९००२५३ है।
ReplyDeleteकाली तुलसी कहां बिकेगी उसका पता देवें मेरा नाम निरंजन मिश्रा फोन नंबर 8169948937
ReplyDeleteहै।
Hello.. i m interested
ReplyDelete9588001675
I am interested 9702259149/7977319953 Arun Mandave, maharashtra,pls.details about desde availability,sales market etc.
ReplyDeleteI am interested in pl.help me about seed&marketing after harvesting mob.no.9309928843
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ReplyDeleteKharidar ka contact number kya hai
9987860951
ReplyDeleteKharidar ka contact number kya hai
9987860951
Namaste sir mujhe papermint oil k bare me jankari chahiye tha. Isko bnane or sell karne me kis licence ki jarurat padegi.kripya jankari dijiye.
ReplyDeleteMo.No-9691443355
Chhattisgarh
Mai bhi yah kheti karna chahta hoo!
ReplyDelete9149978105
Sir muze Kali Tulshi KO kheti puri jankari do air kana bikegi air kaisa munafa hoga
ReplyDeleteI am 100% sure to do this business. Kindly call me or give me your phone on or WhatsApp 8360169701
ReplyDeleteSir, black tulsi ko kaha sale karay
ReplyDeleteSir I read your discreption box I want to start side business with low investment pls send your detail contact no on my what app no 8360928129
ReplyDeleteIm from maharashtra...im interested to do...plz guide 9175340300
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